Restitution of conjugal rights

Restitution of conjugal rights When either the husband or the wife has, without reasonable excuse, withdrawn from the society of the other, the aggrieved party may apply, by petition to the district court, for restitution of conjugal rights and the court, on being satisfied of the truth of the statements made in such petition and that there is no legal ground why the application should not be granted, may decree restitution of conjugal rights accordingly. Explanation- Where a question arises whether there has been reasonable excuse for withdrawal from the society, the burden of proving reasonable excuse shall be on the person who has withdrawn from the society.[1] A decree of restitution of conjugal rights implies that the guilty party is ordered to live with the aggrieved party. The decree of conjugal rights cannot be executed by forcing the party who has withdrawn from the society from the other to stay with the person who institutes petition for restitution. The d...

EPIDEMIC ACT

महामारी अधिनियम,1897 [Epidemic Diseases Act, 1897]

महामारी अधिनियम, 1897 अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बनाया गया | है यह कानून उस दौर में बंबई प्रांत में प्लेग की महामारी फैलने के बाद बनाया गया था| इस कानून में चार धाराएं शामिल हैं |

इसमें राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वो रेल या फिर किसी भी अन्य परिवहन माध्यम से यात्रा कर रहे लोगों की चेकिंग कर सकते हैं |

इस कानून में विरोध कर रहे लोगों को हिरासत में लेने और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करने की भी शक्तियां दी गई हैं |

इस कानून में सदभावना के लिए काम कर रहे कर्मियों की सुरक्षा की भी बात कही गई है. इसके अलावा कानून का उल्लंघन करने वालों पर दंड का भी प्रावधान है |

इस कानून के तहत सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का अगर कोई व्यक्ति उल्लंघन करता है तो उस पर धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई की जाती है |

आईपीसी,1860 (INDIAN PENAL CODE) धारा 188 

आईपीसी की धारा 188 का जिक्र महामारी कानून के सेक्शन 3 में किया गया है  इसके तहत 

1) अगर आप किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा दिए निर्देशों का उल्लंघन करते हैं तो आप पर यह धारा लगाई जा       सकती है |

2) सरकार द्वारा जारी निर्देशों की जानकारी है, फिर भी आप उनका उल्लंघन कर रहे हैं तब भी यह धारा लगाई      जा सकती है |

कितनी सजा हो सकती है :-

1) धारा 188 के तहत अगर नियम तोड़ा तो कम से कम एक महीने की जेल या 200  रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है.

2) अगर आदेश के उल्लंघन से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा, को खतरा हुआ तो कम से कम 6 महीने की जेल या 1000 रुपये जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है |

क्या कोरोना पॉजिटिव आए मरीज पर होगा केस ?

जी नहीं, लेकिन अगर उसने लॉकडाउन के नियमों को तोड़ा है या जानबुझकर अपनी बीमारी छिपाई है और दूसरों तक फैलाई है तब उसके खिलाफ केस किया जा सकता है|

AMENDMEND अध्यादेश:

मोदी सरकार ने अध्यादेश के ज़रिए महामारी क़ानून 1897 में बदलाव कर कड़े प्रावधान जोड़े हैं| 

इस क़ानून का सबसे अहम पहलू ये है कि :-

* इसमें डॉक्टरों को कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई के चलते मकान मालिकों द्वारा घर छोड़ने जैसी घटनाओं को भी     उत्पीड़न मानते हुए एक तरह की सज़ा का प्रावधान किया गया है|

* क़ानून में डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक स्टॉफ समेत अन्य सभी स्वास्थ्यकर्मियों पर हमला या उत्पीड़न को       संज्ञेय अपराध की श्रेणी में ग़ैर जमानती बना दिया गया है. ऐसे मामलों में मुक़दमा 1 महीने में शुरू करने          और   1 साल के भीतर केस का फ़ैसला हो जाने का प्रावधान किया गया है|

दोषी पाए जाने वालों के लिए सख़्त सज़ा का प्रावधान किया गया है| इसका आधार हमले और उत्पीड़न की गम्भीरता को बनाते हुए सज़ा को दो श्रेणी में बांटा गया है |

अगर अपराध ज़्यादा गम्भीर नहीं है - 3 महीने से 5 साल तक की क़ैद हो सकती है. साथ         

                                                        - 50 हज़ार से 2 लाख रुपए तक के जुर्माना |

अगर गम्भीर हानि हुई तो -    6 महीने से लेकर 7 साल तक क़ैद 

                                           1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक के जुर्माना | 

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